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Guru Purnima Puja Vidhi in Hindi 19th July 2016 गुरूपूर्णिमा पूजन विधि
Guru Purnima Puja Vidhi in Hindi 19th July 2016 गुरूपूर्णिमा पूजन विधि
For Mantra Diksha & Sadhana Guidance email to shaktisadhna@yahoo.com or call us on 9410030994 or 9540674788. For more information visit http://www.baglamukhi.info or http://www.yogeshwaranand.org
ईश्वर उपासना में सर्वप्रथम गुरू पूजन किया जाता है। परमात्मा का साक्षात्कार तो इतना सरल नही है लेकिन वही परमात्मा इस संसार में साकार रूप में आपकी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में सहायता करता है। गुरूदेव के मार्गदर्शन से ही साधक ईश्वर को प्राप्त करता है। बिना गुरू के ईश्वर को पाना इतना सरल नही है। यदि ईश्वर को पाना इतना सरल हो जाये तो ईश्वर का महत्व ही इस संसार से समाप्त हो जायेगा। यदि ईश्वर की अनुभूति शीघ्र हो जाये तो साधक को इस बात का अंहकार हो जाता है एवं उसकी आध्यात्मिक प्रगति रूक जाती है, इसीलिए ईश्वर ही स्वप्न व ध्यान में संकेत द्वारा गुरू रूप में दर्शन देकर मार्ग प्रदर्शन करता है। इष्ट ही गुुरू रूप में दर्शन देता है। गुरू ईश्वर की महिमा का वर्णन करता है एवं इष्ट ही गुरू रूप में दर्शन देकर गुरू की महिमा बढ़ाता है।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। भारत भर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन गुरुपूजा का विधान है।
वैसे तो दुनिया में कई विद्वान हुए हैं परंतु चारों वेदों के प्रथम व्याख्या कर्ता व्यास ऋषि थे, जिनकी आज के दिन पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं। अतः वे हमारे आदिगुरु हुए, इसीलिए गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
उनकी स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पूजा करके उन्हें कुछ न कुछ दक्षिणा देते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि महात्माओं का श्राप भी मोक्ष की प्राप्ति कराता है। यदि राजा परीक्षित को ऋषि का श्राप नहीं होता तो उनकी संसार के प्रति जो आसक्ति थी वह दूर नहीं होती। आसक्ति होने के कारण उन्हें वैराग्य नहीं होता और वैराग्य के बिना श्रीमद्भागवत के श्रवण का अधिकार प्राप्त नहीं होता। साधु के श्राप से ही उन्हें भगवान नारायण, शुकदेव के दर्शन और उनके द्वारा देव दुर्लभ श्रीमद्भागवत का श्रवण प्राप्त हुआ।
इसके मूल में ही साधु का श्राप था। जब साधु का श्राप इतना मंगलकारी है तो साधु की कृपा न जाने क्या फल देने वाली होती होगी। अतः हमें गुरूपूर्णिमा के दिन अपने गुरु का स्मरण अवश्य करना चाहिए।
गुरू पूजन विधि
यदि इस दिन अपने गुरू देव के दर्शन प्राप्त हो जाये तो इससे अधिक प्रसन्नता का विषय तो हो नही सकता, लेकिन किसी कारण वश यदि गुरू देव का साक्षात्कार इस दिन ना हो सके तो उनका पूजन अवश्य करना चाहिए।
सर्वप्रथम आसन पर बैठ जायें एवं आचमन करें। उसके पश्चात अपने गुरूदेव का ध्यान करें एवं उनकी फोटो के आगे दीपक जलायें, यदि फोटो ना हो तो भगवान शिव के आगे भी ऐसा कर सकते हैं। उसके पश्चात उनके आगे कुछ प्रसाद रखें एवं पीले पुुष्पों की माला उनका भेंट करें। सामर्थ्यानुसार उनके लिए कुछ दक्षिणा एवं कपडे़ रखने चाहिए जिन्हे बाद मेें मिलने पर उन्हें भेंट करें।
इसके पश्चात गुरू मंत्र का अधिक से अधिक संख्या में जप करना चाहिए।
मंत्र – ओम् परमतत्वाय योगेश्वराय गुरूभ्यो नमः
इसके पश्चात अपने इष्ट का जप करें एवं वह जप अपने गरूदेव को समर्पित करें।
इस दिन अपने गुरू देव के सर्व मंगल की एवं उनके शतायु होने की प्रार्थना परमात्मा से अवश्य करनी चाहिए।
आप सभी पर परमात्मा एवं गुरूजनों की सदैव अनुकम्पा बनी रहे, इसी प्रार्थना के साथ अपने शब्दों को विराम देते हैं।
Download Guru Purnima Puja Vidhi in Hindi Pdf 2015
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Guru Purnima Puja Vidhi in Hindi 31st July 2015 गुरूपूर्णिमा पूजन विधि
Guru Purnima Puja Vidhi in Hindi
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ईश्वर उपासना में सर्वप्रथम गुरू पूजन किया जाता है। परमात्मा का साक्षात्कार तो इतना सरल नही है लेकिन वही परमात्मा इस संसार में साकार रूप में आपकी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में सहायता करता है। गुरूदेव के मार्गदर्शन से ही साधक ईश्वर को प्राप्त करता है। बिना गुरू के ईश्वर को पाना इतना सरल नही है। यदि ईश्वर को पाना इतना सरल हो जाये तो ईश्वर का महत्व ही इस संसार से समाप्त हो जायेगा। यदि ईश्वर की अनुभूति शीघ्र हो जाये तो साधक को इस बात का अंहकार हो जाता है एवं उसकी आध्यात्मिक प्रगति रूक जाती है, इसीलिए ईश्वर ही स्वप्न व ध्यान में संकेत द्वारा गुरू रूप में दर्शन देकर मार्ग प्रदर्शन करता है। इष्ट ही गुुरू रूप में दर्शन देता है। गुरू ईश्वर की महिमा का वर्णन करता है एवं इष्ट ही गुरू रूप में दर्शन देकर गुरू की महिमा बढ़ाता है।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा कहते हैं। भारत भर में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन गुरुपूजा का विधान है।
वैसे तो दुनिया में कई विद्वान हुए हैं परंतु चारों वेदों के प्रथम व्याख्या कर्ता व्यास ऋषि थे, जिनकी आज के दिन पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यासजी ही हैं। अतः वे हमारे आदिगुरु हुए, इसीलिए गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
उनकी स्मृति को ताजा रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पूजा करके उन्हें कुछ न कुछ दक्षिणा देते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि महात्माओं का श्राप भी मोक्ष की प्राप्ति कराता है। यदि राजा परीक्षित को ऋषि का श्राप नहीं होता तो उनकी संसार के प्रति जो आसक्ति थी वह दूर नहीं होती। आसक्ति होने के कारण उन्हें वैराग्य नहीं होता और वैराग्य के बिना श्रीमद्भागवत के श्रवण का अधिकार प्राप्त नहीं होता। साधु के श्राप से ही उन्हें भगवान नारायण, शुकदेव के दर्शन और उनके द्वारा देव दुर्लभ श्रीमद्भागवत का श्रवण प्राप्त हुआ।
इसके मूल में ही साधु का श्राप था। जब साधु का श्राप इतना मंगलकारी है तो साधु की कृपा न जाने क्या फल देने वाली होती होगी। अतः हमें गुरूपूर्णिमा के दिन अपने गुरु का स्मरण अवश्य करना चाहिए।
गुरू पूजन विधि
यदि इस दिन अपने गुरू देव के दर्शन प्राप्त हो जाये तो इससे अधिक प्रसन्नता का विषय तो हो नही सकता, लेकिन किसी कारण वश यदि गुरू देव का साक्षात्कार इस दिन ना हो सके तो उनका पूजन अवश्य करना चाहिए।
सर्वप्रथम आसन पर बैठ जायें एवं आचमन करें। उसके पश्चात अपने गुरूदेव का ध्यान करें एवं उनकी फोटो के आगे दीपक जलायें, यदि फोटो ना हो तो भगवान शिव के आगे भी ऐसा कर सकते हैं। उसके पश्चात उनके आगे कुछ प्रसाद रखें एवं पीले पुुष्पों की माला उनका भेंट करें। सामर्थ्यानुसार उनके लिए कुछ दक्षिणा एवं कपडे़ रखने चाहिए जिन्हे बाद मेें मिलने पर उन्हें भेंट करें।
इसके पश्चात गुरू मंत्र का अधिक से अधिक संख्या में जप करना चाहिए।
मंत्र – ओम् परमतत्वाय योगेश्वराय गुरूभ्यो नमः
इसके पश्चात अपने इष्ट का जप करें एवं वह जप अपने गरूदेव को समर्पित करें।
इस दिन अपने गुरू देव के सर्व मंगल की एवं उनके शतायु होने की प्रार्थना परमात्मा से अवश्य करनी चाहिए।
आप सभी पर परमात्मा एवं गुरूजनों की सदैव अनुकम्पा बनी रहे, इसी प्रार्थना के साथ अपने शब्दों को विराम देते हैं।
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