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Tripur Bhairavi Tantra ( त्रिपुर भैरवी तन्त्रम् षष्टम महाविद्या )

त्रिपुर भैरवी तन्त्रम्
(षष्टम महाविद्या)
भैरव शब्द तीन शब्दों- भ+र +व से मिलकर बना है। जिसमें ‘भ’ का अर्थ है-भरण, ‘र’ का अर्थ है रमण और ‘व’ का अर्थ है वमन। अर्थात् भरण, रमण और वमन। भगवान भैरव भरण करते हैं, रमण करते हैं और वमन भी करते हैं। अर्थात् प्रदान करते हैं। इसी प्रकार ‘भैरवी’ शब्द का निर्माण चार अक्षरों से मिलकर हुआ है- भ, र, व तथा ई= भैरवी। भैरवी कौन हैं ? वे हैं भैरव की शक्ति। वही शक्ति जो भैरव को क्रियाशील बनाये रखती हैं। भगवान शिव और भगवान भैरव के बीच की कड़ी हैं-भैरवी। शिव को भैरव में परिवर्तित भैरवी ही करती है। आद्य और आद्या शक्ति को जोड़ने वाली शक्ति का नाम ही ‘भैरवी’ हैं, जो महात्रिपुर सुन्दरी की रथवाहिनी कहलाती है।ये श्रीललिताम्बा की प्रमुख सहायिका, परम विश्वसनीय सखी के रूप में क्रियाशील होती हैं। एक प्रकार से यदि देखा जाये तो ये सृष्टि में क्रियात्मकता का प्रतीक हैं। उन्मुक्तता, आनंदता, घोरता, रूदनता, विलापता इत्यादि इनके चारित्रिक प्रमुख लक्षण है। सृष्टि की बुदबुदाहट सदैव इन्हीं से प्राप्त होती है, यह अग्नि का प्रतीक है। जल को यदि अग्नि के ऊपर किसी पात्र में रख दिया जाये तो वह बुदबुदाने लगेगा, क्योंकि उसकी क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। यदि ऐसा ना हो तो सृष्टि समाप्त हो जाये। पराभव को प्राप्त हो रही सृष्टि को नित्य युवा और यौवनवान बनाये रखने की निरंतरता त्रिपुर भैरवी ही सम्पन्न करती है।

भगवान भैरव शिव का ही प्रतिरूप हैं। भैरवी भी शिव की एक उपशक्ति ही है। भैरव प्रत्येक क्षेत्र में पारंगत हैं। उनकी कलात्मकता, उनकी क्षमता, योग्यता, पारंगतता, दक्षता अतुलनीय है। तब उनकी भैरवी कैसी हो सकती है? उनकी भैरवी तो वही हो सकती है, जिसमें भैरव जितनी ही कलात्मकता, क्षमता, योग्यता, पारंगतता और दक्षता हो। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक तल पर दोनों में समानता हो। तांत्रोक्त भैरवी-साधना में भैरवी और भैरव का स्खलन का चरमोत्कर्ष बिन्दु एक ही होना चाहिए। इनकी असमानता से दोनों पक्षों का पूरा गणित ही बिगड़ जाता है। क्योंकि यदि भैरव का स्खलन देर से होगा तो भैरव शिवस्वरूप हो जाते हेैं, क्योंकि यहां वे अधिक शक्तिशाली होते हैं। और यदि भैरवी विलम्ब से द्रवित होगी तब वह भैरवी न होकर देवी हो जाती है। समागम के समय शक्ति के द्रवित होने का विलम्ब उसे देवी स्वरूपा बना देता है क्योंकि उस समय वह अधिक शक्तिशाली होती है। इसलिए दोनों का सम्पूर्ण तलों पर समन्वय होना आवश्यक है।

गुरुदेव अभी माँ त्रिपुर भैरवी के ऊपर पुस्तक लिख रहें हैं उसकी का कुछ अंश यहाँ दिया गया है। दस महाविद्याओं की साधना से सम्बंधित किसी भी जानकारी के लिए गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी से संपर्क कर सकते हैं – 9917325788 , 7827897842

गुरुदेव के द्वारा लिखित अन्य पुस्तकें – 1 – अनुष्ठानों का रहस्य – Rs 300
2 – यन्त्र साधना 131 दुर्लभ यंत्रों का अनुपम संग्रह – Rs 300
3 – श्री भैरव शाबर मंत्र सँग्रह – Rs 150
4 – मंत्र साधना एवं सिद्धि के रहस्य – Rs 450
5 – आगम रहस्य – Rs 400
6 – स्वरोदय साधना के चमत्कार – Rs 150
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9 – शाबर मंत्र सर्वस्व – Rs 380
10 – श्री प्रत्यंगिरा साधना रहस्य – Rs 400
11 – श्री विद्या साधना रहस्य श्री यन्त्र पूजन सपर्या सहित – Rs 500
12 – श्री बगलामुखी साधना रहस्य ब्रह्मास्त्र साधना – Rs 750
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14 – बगलामुखी तंत्रम – Rs – 400
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